History Of Yoga In Hindi योग का इतिहास हिंदी में
History Of Yoga In Hindi- योग का इतिहास हिंदी में
नमस्कार Health Divin ब्लॉग में आपका स्वागत है यह हमारा पहला लेख है जो पूरी तरह से योग को समर्पित है
इस लेख में हम आपको योग के इतिहास ( History Of Yoga In Hindi )को हिंदी में बिलकुल सरल तरीके से बताएंगे तो आइये जानते है योग के बारे में
योग का इतिहास - History Of Yoga In Hindi
योग क्या है| - योग शब्द एक संस्कृत शब्द है | जो युज धातु से आया है| जिसका अर्थ है इकट्ठा होना या बांधना, यह एक आद्यात्मिक प्रक्रिया है| जहाँ शरीर मन और आत्मा एक साथ होते हैं| योग मनुष्य को जीवन जीने की कला सिखाता है|महर्षि पाणिनी के अनुसार योग की परिभाषा -
१. युजिर योगे - अर्थात संसार के साथ वियोग और ईश्वर के साथ संयोग का नाम योग है |
२ .युज समाधो - अर्थात समाधी के लिए साधना से जुड़ना योग हैं |
३ .युज सयमने -अर्थात मन |
पतंजलि के अनुसार चित्त की वृत्तियो को चंचल होने से रोकना ( चित्तवृत्ति निरोधः ) ही योग हैं | अर्थात मन को इधर-उधर भटकने न देना केवल एक ही वस्तु में स्थिर रखना ही योग है |
योग भारतीय जीवन पद्धति का एक अति विशिष्ठ अंग है| और वेद भारतीय संस्कृति का प्राचीन ग्रन्थ है| वेदो की संख्या चार है ऋगवेद , यजुर्वेद ,सामवेद और अथर्ववेद |
इसी संदर्भ में ऋगवेद में कहा गया है |
यस्माहते न सिध्यति यज्ञोविपश्रित श्रान |
स धीनां योगमिन्वति
अर्थात विद्वानो का कोई भी कर्म बिना योग के पूर्णतः सिद्ध नहीं होता |
स घा नो योग आभुपत स राये स पुरं ध्याम
गमद वाजेभरा स नः
( ऋग्वेद १ /५ /३ / सामवेद १ /२ /३११ )
अर्थात ईश्वर की कृपा से हमे योग (समाधि )सिद्ध होकर विवेक ख्याति तथा ऋतम्भरा प्रज्ञा प्राप्त हो और वही ईश्वर अरिमा आदि सिद्धयो सहित हमारे पास आवे|
उदव्यतारकोपनिषद , अमृतबिंदूपनिषद , अमृतानोपनिषद ,मुक्तिउपनिषद ,तेजोबिन्दूपनिषद , त्रिशिखब्राह्मणोपनिषद ,दर्शनोपनिषद ,ध्यानबिंदूपनिषद ,नादबिंदूपनिषद आदि है| इन सभी उपनिषदों में चित्त ,चक्र ,नाड़ी ,कुण्डलिनी ,इन्द्रियों ,यम नियम ,आसन ,प्राणायाम,ध्यान ,समाधि ,हठयोग ,राजयोग ,ब्रह्मध्यान योग का वर्णन मिलता है |
योग के बारे में यह मत भी प्रचलित है की सृस्टि के आरम्भ से ही योग का वर्णन मिलता है | सर्वप्रथम हिरण्यगर्भ ब्रम्हा अथवा ब्रम्हा जी ने सनकादि ऋषि अर्थात ब्रम्हा जी के चार पुत्रो सनक ,सनन्दन ,सनातन व सनत्कुमार को योग का उपदेश दिया बाद में यह दो शाखाओ में विभक्त हो गया |
एक ब्रम्हयोग और दूसरा कर्म योग
ब्रम्हयोग - ब्रह्मयोग की परम्परा सनक ,सनन्दन ,सनातन,सनत्कुमार,कपिल,आसुरि ,पंचशिखा ,नारद शुकादिकों ने शुरू की थी यह ज्ञान ,अध्यात्म और संख्या योग के नाम से लोगो में प्रसिद्ध हुआ |
कर्म योग - कर्म योग की परम्परा विवश्वान (सूर्य ) की है| विवश्वान ने मनु ,मनु ने इश्वाकु को ,इश्वाकु ने प्रजाओं को योग का ज्ञान दिया वेद और पुराणों में इन सभी बातो का उल्लेख मिलता है |
पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार भारत में योग की उत्पत्ति लगभग 5000 ई पूर्व में हुई 2700 ईसा पूर्व में सिंधु सरस्वती घाटी सभ्यता में योग के प्रमाण मिलते है | योग करते हुए पितरो के साथ सिंधु सरस्वती घाटी सभ्यता के अनेक अवशेष एवं मुहरे भारत में योग मौजूदगी को दर्शाती है |
सिंधु घाटी की बहुत सी मुहरे योगियों तथा योग मुद्राओ से सम्बंधित है |मोहनजोदड़ो में सबसे प्रसिद्ध ' पशुपति ' मुहर है जिसमे एक तीन मुँह वाला मुकुट सिर पर पहने एक योगिक समाधि में बैठा है|
महर्षि पतंजलि - महर्षि पतंजलि ने ही सर्वप्रथम बिखरी हुई योग विद्या को 195 सूत्रों में प्रतिपादित किया |जो योग दर्शन के स्तंभ मने गए है और इसके साथ ही इन्होने अष्टांग योग की महिमा को बताया जो स्वस्थ्य जीवन के लिए महत्वपूर्ण है|
अष्टांग योग इस प्रकार है -
यम ,नियम,आसान,प्राणायाम,प्रत्याहार,धारणा ,ध्यान,समाधि वर्तमान में इन अष्टांग योग में से केवल तीन आसान ,प्राणायाम और ध्यान प्रचलन में है |
जैन ,बौद्ध धर्म में योग का वर्णन - बौद्ध धर्म में हमे यम और नियम का उपदेश मिलता है यम और नियम के पश्चात योग में आसन का वर्णन है ,जोकि स्थिरतापूर्वक शरीर की किसी स्थिति का है | बौद्ध साधना में साधक ध्यान आदि के लिए किसी न किसी आसन का प्रयोग करता ही है स्वयं भगवान् बुद्ध की मूर्ति पद्मासन में पाई जाती है |स्वयं बुद्ध ने भी ' आनापान सति ' के रूप में प्राणायाम का उपदेश दिया था |
जैन धर्म में यम और नियम अर्थात अहिंसा ,सत्य ,ब्रह्मचर्य ,अस्तेय अपरिग्रह, तप , स्वाध्याय का प्रचलन ही अधिक रहा है|
गीता महाभारत में योग का उपदेश - गीता में मुख्यतः तीन योगो का उल्लेख मिलता है ज्ञानयोग ,कर्मयोग और भक्तियोग महाभारत युद्ध के दौरान जब अर्जुन रिश्ते नातो में उलझ कर मोह में बंध रहे थे तब भगवान श्रीकृष्ण गीता में अर्जुन को बताया था की जीवन में सबसे बड़ा योग कर्मयोग है |
भगवान् शंकर को आदि पुरुष योग पुरुष कहा गया है |भगवान शंकर के बाद ऋषि मुनियो से योग का प्रचार प्रसार हुआ | कृष्ण ,महावीर और बुद्ध ने अपनी तरह से विस्तार किया महर्षि पतंजलि ने इसे सुव्यवस्थित रूप दिया | इन सभी प्रमाणों से यह सिद्ध होता है की भारत में ही सर्वप्रथम योग का उद्भव हुआ| यह विश्व को भारत की अनमोल देन है जिसका कोई मोल नहीं है |और आज भी लोगो के बीच में योग ने अपना अस्तित्व बनाये रखा है इसका श्र्ये पतंजलि के संस्थापक योगगुरु स्वामी राम देव जी को जाता है जिन्होंने योग को घर - घर तक पहुंचाया| हमे हमारी विरासत ,हमारी संस्कृति ,परम्पराओ पर गर्व है |
Q-1- योग की शुरुआत कैसे हुई ?
ans - वैदिक काल के ऋग्वेद में सर्वप्रथम योग शब्द का उल्लेख मिलता है | भगवान शिव को सबसे बड़ा योगी माना जाता है| इनके ऋषि मुनियो ने योग की शुरुआत की |
Q-2- योग का क्या अर्थ है ?
ans- योग शब्द एक संस्कृत शब्द है, जो युज धातु से आया है जिसका अर्थ है इकठ्ठा होना या बाँधना |
Q-3- योग के लाभ क्या है ?
ans- योग के निम्न लाभ है |
१. युजिर योगे - अर्थात संसार के साथ वियोग और ईश्वर के साथ संयोग का नाम योग है |
२ .युज समाधो - अर्थात समाधी के लिए साधना से जुड़ना योग हैं |
३ .युज सयमने -अर्थात मन |
पतंजलि के अनुसार चित्त की वृत्तियो को चंचल होने से रोकना ( चित्तवृत्ति निरोधः ) ही योग हैं | अर्थात मन को इधर-उधर भटकने न देना केवल एक ही वस्तु में स्थिर रखना ही योग है |
योग की उत्पत्ति - आज हम आपको योग की उत्पत्ति और योग का इतिहास हिंदी में बताने जा रहे है |
1800-1100 ईसा पूर्व वैदिक काल में योग शब्द का उल्लेख ऋगवेद में मिलता है| इसके बाद अनेक उपनिषदों में इसका उल्लेख आया |योग भारतीय जीवन पद्धति का एक अति विशिष्ठ अंग है| और वेद भारतीय संस्कृति का प्राचीन ग्रन्थ है| वेदो की संख्या चार है ऋगवेद , यजुर्वेद ,सामवेद और अथर्ववेद |
इसी संदर्भ में ऋगवेद में कहा गया है |
यस्माहते न सिध्यति यज्ञोविपश्रित श्रान |
स धीनां योगमिन्वति
अर्थात विद्वानो का कोई भी कर्म बिना योग के पूर्णतः सिद्ध नहीं होता |
स घा नो योग आभुपत स राये स पुरं ध्याम
गमद वाजेभरा स नः
( ऋग्वेद १ /५ /३ / सामवेद १ /२ /३११ )
अर्थात ईश्वर की कृपा से हमे योग (समाधि )सिद्ध होकर विवेक ख्याति तथा ऋतम्भरा प्रज्ञा प्राप्त हो और वही ईश्वर अरिमा आदि सिद्धयो सहित हमारे पास आवे|
उपनिषद - भारतीय संस्कृति के आध्यात्मिक ग्रंथो में उपनिषदों का स्थान बहुत ही अग्रणी है| उपनिषदों में उच्च कोटि का ज्ञान भरा है | कुछ प्रमुख उपनिषद है जिनमे केवल योग का वर्णन विशेष रूप से किया गया है जो निम्न है |
उदव्यतारकोपनिषद , अमृतबिंदूपनिषद , अमृतानोपनिषद ,मुक्तिउपनिषद ,तेजोबिन्दूपनिषद , त्रिशिखब्राह्मणोपनिषद ,दर्शनोपनिषद ,ध्यानबिंदूपनिषद ,नादबिंदूपनिषद आदि है| इन सभी उपनिषदों में चित्त ,चक्र ,नाड़ी ,कुण्डलिनी ,इन्द्रियों ,यम नियम ,आसन ,प्राणायाम,ध्यान ,समाधि ,हठयोग ,राजयोग ,ब्रह्मध्यान योग का वर्णन मिलता है |
योग के बारे में यह मत भी प्रचलित है की सृस्टि के आरम्भ से ही योग का वर्णन मिलता है | सर्वप्रथम हिरण्यगर्भ ब्रम्हा अथवा ब्रम्हा जी ने सनकादि ऋषि अर्थात ब्रम्हा जी के चार पुत्रो सनक ,सनन्दन ,सनातन व सनत्कुमार को योग का उपदेश दिया बाद में यह दो शाखाओ में विभक्त हो गया |
एक ब्रम्हयोग और दूसरा कर्म योग
ब्रम्हयोग - ब्रह्मयोग की परम्परा सनक ,सनन्दन ,सनातन,सनत्कुमार,कपिल,आसुरि ,पंचशिखा ,नारद शुकादिकों ने शुरू की थी यह ज्ञान ,अध्यात्म और संख्या योग के नाम से लोगो में प्रसिद्ध हुआ |
कर्म योग - कर्म योग की परम्परा विवश्वान (सूर्य ) की है| विवश्वान ने मनु ,मनु ने इश्वाकु को ,इश्वाकु ने प्रजाओं को योग का ज्ञान दिया वेद और पुराणों में इन सभी बातो का उल्लेख मिलता है |
पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार भारत में योग की उत्पत्ति लगभग 5000 ई पूर्व में हुई 2700 ईसा पूर्व में सिंधु सरस्वती घाटी सभ्यता में योग के प्रमाण मिलते है | योग करते हुए पितरो के साथ सिंधु सरस्वती घाटी सभ्यता के अनेक अवशेष एवं मुहरे भारत में योग मौजूदगी को दर्शाती है |
सिंधु घाटी की बहुत सी मुहरे योगियों तथा योग मुद्राओ से सम्बंधित है |मोहनजोदड़ो में सबसे प्रसिद्ध ' पशुपति ' मुहर है जिसमे एक तीन मुँह वाला मुकुट सिर पर पहने एक योगिक समाधि में बैठा है|
महर्षि पतंजलि - महर्षि पतंजलि ने ही सर्वप्रथम बिखरी हुई योग विद्या को 195 सूत्रों में प्रतिपादित किया |जो योग दर्शन के स्तंभ मने गए है और इसके साथ ही इन्होने अष्टांग योग की महिमा को बताया जो स्वस्थ्य जीवन के लिए महत्वपूर्ण है|
अष्टांग योग इस प्रकार है -
यम ,नियम,आसान,प्राणायाम,प्रत्याहार,धारणा ,ध्यान,समाधि वर्तमान में इन अष्टांग योग में से केवल तीन आसान ,प्राणायाम और ध्यान प्रचलन में है |
जैन ,बौद्ध धर्म में योग का वर्णन - बौद्ध धर्म में हमे यम और नियम का उपदेश मिलता है यम और नियम के पश्चात योग में आसन का वर्णन है ,जोकि स्थिरतापूर्वक शरीर की किसी स्थिति का है | बौद्ध साधना में साधक ध्यान आदि के लिए किसी न किसी आसन का प्रयोग करता ही है स्वयं भगवान् बुद्ध की मूर्ति पद्मासन में पाई जाती है |स्वयं बुद्ध ने भी ' आनापान सति ' के रूप में प्राणायाम का उपदेश दिया था |
जैन धर्म में यम और नियम अर्थात अहिंसा ,सत्य ,ब्रह्मचर्य ,अस्तेय अपरिग्रह, तप , स्वाध्याय का प्रचलन ही अधिक रहा है|
गीता महाभारत में योग का उपदेश - गीता में मुख्यतः तीन योगो का उल्लेख मिलता है ज्ञानयोग ,कर्मयोग और भक्तियोग महाभारत युद्ध के दौरान जब अर्जुन रिश्ते नातो में उलझ कर मोह में बंध रहे थे तब भगवान श्रीकृष्ण गीता में अर्जुन को बताया था की जीवन में सबसे बड़ा योग कर्मयोग है |
भगवान् शंकर को आदि पुरुष योग पुरुष कहा गया है |भगवान शंकर के बाद ऋषि मुनियो से योग का प्रचार प्रसार हुआ | कृष्ण ,महावीर और बुद्ध ने अपनी तरह से विस्तार किया महर्षि पतंजलि ने इसे सुव्यवस्थित रूप दिया | इन सभी प्रमाणों से यह सिद्ध होता है की भारत में ही सर्वप्रथम योग का उद्भव हुआ| यह विश्व को भारत की अनमोल देन है जिसका कोई मोल नहीं है |और आज भी लोगो के बीच में योग ने अपना अस्तित्व बनाये रखा है इसका श्र्ये पतंजलि के संस्थापक योगगुरु स्वामी राम देव जी को जाता है जिन्होंने योग को घर - घर तक पहुंचाया| हमे हमारी विरासत ,हमारी संस्कृति ,परम्पराओ पर गर्व है |
निष्कर्ष - उम्मीद है की इस लेख को पढ़ कर आपको योग का इतिहास हिंदी में- History Of Yoga In Hindi के बारे में सम्पूर्ण जानकारी मिल गयी होगी |
FAQQ-1- योग की शुरुआत कैसे हुई ?
ans - वैदिक काल के ऋग्वेद में सर्वप्रथम योग शब्द का उल्लेख मिलता है | भगवान शिव को सबसे बड़ा योगी माना जाता है| इनके ऋषि मुनियो ने योग की शुरुआत की |
Q-2- योग का क्या अर्थ है ?
ans- योग शब्द एक संस्कृत शब्द है, जो युज धातु से आया है जिसका अर्थ है इकठ्ठा होना या बाँधना |
Q-3- योग के लाभ क्या है ?
ans- योग के निम्न लाभ है |
- शरीर लचीला होता है
- इम्युनिटी को बढ़ाता है |
- मन को शांत रखता है |
- अधिक ऊर्जा प्रदान करता है |
- फेफड़ो को मजबूत करता है |
- शरीर में ऑक्सीजन की पूर्ति करता है |
Post a Comment